Tuesday, May 24, 2016

पता

पता

वो सांझ,
वो अंधेरोंके साये
काली मिट्टी और ...
सुखे की आगोशमें सिमटे हुए
दूर दूर तक फैले
अपने आपमें तनहां खेत
आसमांसे बाते करते सुखे पेड
और उनकी ....
बातोंमें उलझी खामोशीयाँ
अक्सर पुंछती रहती है
गुजरती हुई हवाओंसे
रुठी हुई बारिशका पता
मैं भी दुआ करता हुँ बार-बार
के मिल जाए उन्हें
खुशनुमा उस बारिश की खबर
तांकि मैं भी जा सकू फिरसे,
फिर उस जगह  ...
और एक बार फिरसे..., कसके
भींच लू अपनी बाहोंमे
मेरे हँसीन बचपनको
जो खोया था वही,
जहां , जब ...
बारिशको भी मालूम हुवा करता था
उसके इंतजार में तरसते खेतोंका पता !

विशाल
१-४-२०१६




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