Wednesday, August 17, 2016

गंगा के तटपर ....

गंगाके तटपर खडा हतप्रभ
स्तब्ध देवसा शख्स कोई
श्यामल रातसी काया उस की
आँखो में उलझन अजबसी

ये कौनसी जगह है ...
क्यां ये वही धरा है ?
शिवजी के मस्तकसें उपजी
क्या ये वही धारा है ?

लहरोंमे डोल रहे शव, और...
तट पर हाट पंडितोंका (?)
ये तेरा, ये मेरा, क्षुब्ध कलह
खुब सजाते, ढोंग भक्तीका

इनसे तो फिर भी अच्छा हूं मैं
छल, अधम हूं..., सच्चा हुं मैं
ये मानव मानवता को छलते
इनसे तो थोडा कच्चा हूं मैं

सोच रहा वो 'देव'* पस्तसा
क्या इसी लिये मैं काशी आया?
देख तमाशा ढोंगी भक्तोका
'पाप' भी वहा खुद्द शरमाया

(* देव हा शब्द ( बहुदा फारसी किंवा असीरीयन संदर्भ ) उंचापुरा धिप्पाड या अर्थाने वापरला आहे, ईश्वर या अर्थाने नाही)

विशाल ...

2 comments: