Wednesday, May 15, 2019

धूप-छाँव



काफ़िलोंमें
बटी हुयी धूप
हर कदमपर छाँवसें
दो हाथ करती रहीं
अपनी जीत पें गर्वित
छाँव को मुँह चिढ़ाती रहीं
अपनी जीत में
मशगूल, उसे पता हीं न चला
के छाँव तो कभी
उससे लड़ी ही नहीं
वो तो अपनी ही धुन में मस्त,
राहगीरोंको ...
शीतलता देनें में व्यग्र थी !

© विशाल कुलकर्णी

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