Sunday, November 23, 2014
डर
पसीनेकी कुछ बुन्दे ठिठकसी गयी थी
सहमकें बैठी थी उनकी पेशानीपर ...
सहमकें बैठी थी उनकी पेशानीपर ...
बार बार उनको छूनेकी कोशीश करतें
जुल्फोके साये कुछ ढीठ से हो गये थे..
जुल्फोके साये कुछ ढीठ से हो गये थे..
तपिशका हल्कासा थपेडा था सुरजकी,
या फिर पता नहीं ... ,
किस शोखसे उलझ बैठी थी आंखे ?
बोझीलसी पलकोंपे मानो चांद उतर आया था
या फिर पता नहीं ... ,
किस शोखसे उलझ बैठी थी आंखे ?
बोझीलसी पलकोंपे मानो चांद उतर आया था
मैने पुंछा तो बस्स तांकते रहे
हलकेसे कहां...
हलकेसे कहां...
आजकल चांद टुकडोमे नजर आता है
डर लगता है छुनेसे...
......... कहीं बिखर न जाये !
डर लगता है छुनेसे...
......... कहीं बिखर न जाये !
विशाल....
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