Sunday, November 1, 2015
इंतज़ार - 2
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उस पीपल के पेड के तले
बहुत सी तनहाईयाँ रहती हैं
अपनी ही...
खामोशीयोंमें सिमटी हुयी
एक चाँद आजकल
पीपल केँ...
चक्कर काटते देखा है मैं ने
कुछ मायूस, कुछ तनहा-तनहा
खोया-खोयासा रहता हैं
जैसे निकला हो...
किसी की तलाश में
कसमसा के रह जाता है पीपल
कुछ बोल नही पाता
पर बहुत कुछ बोलती हैं
पत्तीयों में उलझी खामोशियाँ
जैसे महसूस कर रही हो
उस खामोश दर्द कों
मैं जानता हूँ ...
चाँद चुप्पी नही खोलेगा
किसी ना किसी दिन मुलाक़ात होगी
उस की चांदनी से...
पुछूँगा नही मैं हाल-ए-बेकरार
कभी तो रोशनी का मंजर होगा
उजालों से मुलाकात होगी
मैं इंतज़ार करुंगा
उस मुस्कुराहट का !
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विशाल...
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VERY GULJARISH, As I have said elsewhere. Very good.
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