Wednesday, March 1, 2017
परछाइयाँ
पैरों के छाले खुरचती धूप,
अपनी ही धुन में मगन..
परछाइयों से पूछती रही,
"अब हाल कैसा है?"
हम रह रह कर मुस्कुरातें रहे
अपनी ही परछाई की
अजीब सी उलझने बटोरतें रहे!
अपनी ही धुन में मगन..
परछाइयों से पूछती रही,
"अब हाल कैसा है?"
हम रह रह कर मुस्कुरातें रहे
अपनी ही परछाई की
अजीब सी उलझने बटोरतें रहे!
ग़म में रोने और ख़ुशी में हँसने की
सहूलियत हासिल है हमें!
सहूलियत हासिल है हमें!
परछाइयाँ...
पता नहीं क्यूँ ज़िन्दगी भर
ढोती रहती है बोझ
किसी और की किस्मत
और परायी उम्मीदों का..
जैसे बरगद के पेड़ से लिपटी बेलें
बस नाम की ज़िन्दगी...
जो टिकी हुई है किसी और की साँसों पर!
ढोती रहती है बोझ
किसी और की किस्मत
और परायी उम्मीदों का..
जैसे बरगद के पेड़ से लिपटी बेलें
बस नाम की ज़िन्दगी...
जो टिकी हुई है किसी और की साँसों पर!
इंतज़ार है, तो उस दिन का..
जब मेरी परछाई हँस के कहेगी,
"तुम आगे चलो, मेरा इरादा..
थोड़ी देर और आराम करने का है!"
जब मेरी परछाई हँस के कहेगी,
"तुम आगे चलो, मेरा इरादा..
थोड़ी देर और आराम करने का है!"
© विशाल विजय कुलकर्णी
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