Thursday, April 26, 2018
आवाज़ें...
कहीं पँछीयों की किलकिल
कहीं झरनों की कलकल
कहीं पेड़ों की शाखों से
गुज़रती हवाओं के मद्धम झोंके
फूलों के इर्दगिर्द वो..
मधुमख्खियों का मँडराना
आसमाँ से बाते करती
शानदार घमंडी इमारतें
टूटी हुई दिवारों से गुज़रती
हवाओं से बतियाती झुग्गियाँ
गाड़ियों के पीछे दौडते
कुत्तों का भौंकना
किसी घर की अटरिया पे
बिल्लियों का खिसियाना
कभी सड़क से गुज़रती ...
गाडीयों की सरसराहट
तो कभी रेल की पटरीयों पे
पहियों की वो पुरज़ोर चरमराहट
ट्रेन की आवाज़ में लिपटी
अनगिनत सवारियों की आवाज़ें
किसी मोबाईल की रिंगटोन
किसी आशिक़ की महबूब से
हलकी सी खुसफुसाहट
ट्रेन की भीड़ में खड़ी
अपनी बच्ची से फोन पे बतियाती कोई माँ
आवाज़ें
हर तरफ़ से आती हुई
आवाज़े...
हर तरफ जाती हुई
आवाज़ों की आवाज़
तो काफी सुनी थी मैं ने भी
तुमने हमेशा के लिए अलविदा क्या कह दिया
तब जा के अहसास हुआ ...
ख़ामोशियों की आवाज़ काफी बुलंद हुआ करती है !
© विशाल विजय कुलकर्णी
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