Thursday, December 8, 2016
आदतन
सडक के किनारे बिखरी
अलाव कीं अनगिनत बस्तियां !
अक्सर याद दिलाती हैं,
जिंदगी के सफरमें पिछे छुटे
कुछ जलते हुए जख्म ...
याद आते है वे मंज़र
अपनीही आहोंसे
लहुलूहान वे खंजर...
जो धसें थे सिने में जजबात बनकर
और फिर छाये..;
उदासीयोंके कोहरे मे,
हम ढुंढते रह गए ,
गर्म सांसो की नर्म चिंगारीयां !
जो आहत करती रही,
अपनेही वजूद कों..., आदतन !
हम .....
आज भी ढुंढते हैं,
अतीत कीं धुंध में लिपटे ...
मासुम और तनहां साये,
जिन्हे दुनिया अहसास कहा करती हैं,
युंही...., आदतन !
विशाल
९-१२-२०१६
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment