Tuesday, April 12, 2022
इल्तिज़ा
कुछ पन्ने, अधखुले...
भूली बिसरी यादोंके
हमने लौटाये थे
अपनी ही
ख़स्ता-हाल जिन्दगी को
के सहेजकर रखना
हो सके तो ..
हो सकता है
बुढापे में काम आ जाएं !
विशाल उवाच...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
https://kavitamajheesakhee.blogspot.com/ by Vishal Kulkarni is marked with CC0 1.0 Universal
कुछ पन्ने, अधखुले...
भूली बिसरी यादोंके
हमने लौटाये थे
अपनी ही
ख़स्ता-हाल जिन्दगी को
के सहेजकर रखना
हो सके तो ..
हो सकता है
बुढापे में काम आ जाएं !
विशाल उवाच...
No comments:
Post a Comment