Sunday, July 21, 2019
गझल
आप से मिलना न कोई महज इत्तेफ़ाक़ होता
काश हमपर भी सदा सदक-ए-अशफ़ाक़ होता
सैंकड़ों थे अनकहे नाकामयाबी के बहाने
कामयाबी गर मिले गोया ज़माना ख़ाक़ होता
ज़िन्दगी हँसती रही खुलके हमारी हार पर यूँ
मुस्कुराते यार हम भी गर जिगर बेबाक होता
फ़क़त थोड़ीसी शफ़ाक़त वो हमारे नाम करदे
महबुबा की नज़र में फिर ज़िक्र मेरा पाक़ होता
निगहबाँ मेरा ख़ुदाई दोस्त कोई नेक होता
ना निगाहें यूँ चुराते ना जिया नापाक होता
© विशाल कुलकर्णी
काश हमपर भी सदा सदक-ए-अशफ़ाक़ होता
सैंकड़ों थे अनकहे नाकामयाबी के बहाने
कामयाबी गर मिले गोया ज़माना ख़ाक़ होता
ज़िन्दगी हँसती रही खुलके हमारी हार पर यूँ
मुस्कुराते यार हम भी गर जिगर बेबाक होता
फ़क़त थोड़ीसी शफ़ाक़त वो हमारे नाम करदे
महबुबा की नज़र में फिर ज़िक्र मेरा पाक़ होता
निगहबाँ मेरा ख़ुदाई दोस्त कोई नेक होता
ना निगाहें यूँ चुराते ना जिया नापाक होता
© विशाल कुलकर्णी
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